Wednesday, 28 May 2008

दोस्ती -- मेरी नज़र में

यदि हम एक ही विषय पर बहुत से लोगों की राय जानना चाहें तो हम देखते हैं कि सब के भिन्न भिन्न विचार होते हैं!ऐसा होना स्वाभाविक भी है , क्यूंकि हमारे विचार जिंदगी के तजुर्बे पर आधारित होते हैं !इतना ही नहीं , एक ही विषय पर एक ही इंसान के विचार समय समय पर अपने तजुर्बे के आधार पर बदलते रहते हैं ! अपने विचारों का यह अंतर मैंने अपने तजुर्बे से महसूस किया है ! आज से करीब २७ साल पहले मैंने दोस्ती पर एक लेख लिखा था ! परन्तु यदि आज मुझे एक बार फिर इसी विषय पर लिखना पड़े तो शायद मेरे विचार इस से बिलकुल भिन्न होंगे !२७ साल पहले दोस्ती के बारे में मेरे विचार क्या थे या यूं कहिये कि कितने मासूम थे आपको इससे अवगत कराना चाहती हूँ
अभिव्यक्ति एवं अनुभूति
दोस्ती
अपनी नज़र में
बाग़ में गुलाब का फूल देखा और चल पड़े उसे तोड़ने ! ज़रा संभल कर हाथ बढ़ाना , इस फूल के नीचे बहुत कांटे होते हैं , जिनके ज़रा सा हाथ लगने से घाव हो सकता है !अतः इन काँटों का ध्यान रखते हुए ही फूल तोड़ना ! एक फूल कि सुन्दरता उसकी महक जब मन में बस जाती है तो वह उसे लेने कि ठान ही लेता है ,बेशक उसे कांटे लग जाएँ !
दोस्ती भी एक गुलाब के फूल कि तरह होती है , जिसकी अपनी एक विशेष महक ,अपना एक रंग होता है ! परन्तु फर्क इतना है कि गुलाब के फूल के इन्ही गुणों को देखा जा सकता है , जबकि दोस्ती कि महक को केवल अनुभव किया जा सकता है ! बहुत कम लोग इस अद्रश्य महक का आनंद ले सकते हैं क्यूंकि दोस्ती जैसे फूल के नीचे स्वाभिमान व अंहकार रुपी अनेक नुकीले व कष्टदायी कांटे होते हैं ! इन्हीं स्वाभिमानी काँटों से गुज़र कर ही दोस्ती कि महक का आनंद लिया जा सकता है !
अब प्रश्न यह उठता है कि यहाँ स्वाभिमान व अंहकार को काँटों का रूप देना कहाँ तक उचित है ? स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यक्ति में स्वाभिमान व अंहकार कि भावना होती है !यदि हम दो दोस्तों को एक तराजू के दो पलडे समझें तो हम देखते हैं कि कभी एक पलडे को झुकना पड़ेगा तो कभी दुसरे को ! और झुकने से हमें रोकता है हमारा अहम् ! हमें अपने अंहकार को त्यागना होगा , ठीक उसी प्रकार , जिस प्रकार हम फूल कि टहनी से कांटे तोड़ कर फ़ेंक देते हैं ! ऐसा करने से ही हम दोस्ती रुपी सुन्दर फूल को पा सकते हैं !
इसके विपरीत यदि हमे अंहकार रुपी कांटे न तोड़ कर उसे केवल दबा लिया तो एक दिन अवश्य ही यह हमारी भावनाओं पर ऐसी चोट करेगा जिसका घाव कभी नहीं भर सकता , और जिसके फलस्वरूप हम उन्हीं काँटों में उलझ जायेंगे और हमारा दोस्ती रुपी फूल मुरझा जायेगा , उसकी महक समाप्त हो जायेगी !