Wednesday 27 August, 2008

ये कैसी आधुनिकता ?

किसी भी देश को उसकी संस्कृति,सभ्यता से जाना जाता है !किसी भी देश के नागरिक,उनकी भाषा,पहनावा,रहन-सहन,रीति-रिवाज़,त्यौहार और संस्कार उस देश की पहचान होते हैं !ये हमारा सौभाग्य रहा है कि हमारा भारत देश इन्ही सब कारणों से सदियों से अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए है !हमारे देश कि सबसे बड़ी खासियत एकता में विविधता है !आपसी प्रेम,सहिष्णुता तथा सहायता के कारण ही सब भारतवासी एक सूत्र में बंधे हैं !यह वही भारत है जहाँ सदियों से नारी को सम्मान दिया जाता है और उसके चरणों में स्वर्ग का स्थान माना जाता है !समय के साथ साथ भारत ने बहुत उन्नत्ति की और अब यह एक प्रगतिशील राष्ट्र बनता जा रहा है !भिन्न भिन्न क्षेत्रों में भारत ने अपने पाँव जमाये हैं !खेलों के इतिहास में १०८ साल में पहली बार भारत के पाले में स्वर्ण पदक आया है,उसका श्री अभिनव बिंद्रा को जाता है !सुशील कुमार और विजयेन्द्र सिंह ने भी भारत का गौरव बढाया है !संसार के मानचित्र में भारत एक महाशक्ति का रूप लेता जा रहा है !अन्तरिक्ष में कल्पना चावला ने भारत की उपस्थिति दर्ज कराई है तो बाबी जिंदल ने अपनी योग्यता दर्शायी है !रतन टाटा,लक्ष्मी निवास मित्तल ,अम्बानी और न जाने कितने क्षेत्रों में कितने और भारतीय हैं जिनके योगदान से भारत का गौरव बढ़ा है,और हम भारतवासी होने पर गर्व करने लगे हैं !
मगर अफ़सोस किइसके साथ साथ हमारे संस्कारों को घुन लगता जा रहा है !आज आधुनिकता की होड़ में हम अपने संस्कारों को भूल कर दुसरे देशों के संस्कार अपनाते जा रहे हैं !परन्तु हमें वो संस्कार अपनाने चाहियें जो हमारे लिए हितकर हों और हमारे देश की शान में चार चाँद लगाने में सहायक हों !
मैं खुलेपन या स्वतंत्र वातावरण की विरोधी नहीं हूँ,परन्तु,खुलापन इतना भी न हो कि वो हमारी संस्कृति को ही नष्ट कर दे जिस प्रकार माननीय स्वास्थ्य मंत्री श्री रामदौस जी समलेंगिकता का समर्थन कर रहे हैं ,क्या वो संस्कृति ठीक है ? इनके हिसाब से ऐसा करने से ऐड्स कि बीमारी फैलने की गिरावट होगी !ये एक असंतुलित मानसिकता नज़र आती है !इस प्रकार के समर्थन से हमारे देश को क्या हासिल होगा ?
दूसरा नया और बदनुमा प्रचालन हमारे आधुनिक कहे जाने वाले समाज में आया है वाइफ स्वापिंग का !इन भद्दे प्रचलनों से हमें क्या हासिल होने वाला है ?शराब,सिगरेट,देर रात की पार्टियां तो आम थी ही,ये नए प्रचलन हमारी सभ्यता और संस्कृति को ग्रहण लगा रहे हैं !इन्हीं कारणों से समाज में बलात्कार,यौन शोषण और घरेलु हिंसा के मामलों में वृध्ही हो रही है !
यह सही है कि यदि किसी राष्ट्र को नष्ट करना हो तो उसकी संस्कृति नष्ट कर दो !हमारे संस्कारों कि नींव कमज़ोर होती जा रही है,ज़रूरत है इन्हें बचाने की !मेरे विचार से इन अर्थहीन बातों का विरोध करना चाहिए !हमें अनुकरण करना चाहिए,परन्तु बुरी बातों का नहीं ,अपितु उन बातों का ,जो हमारे समाज की उन्नति में चार चाँद लगाने में सहायक हो,जिन बातों को अपना कर हम गर्व महसूस कर सकें और जिन बातों की वजह से हम संसार में अपना एक विशिष्ठ स्थान पा सकें !

Wednesday 6 August, 2008

कौन है जिम्मेदार ?


कल ही टी.वी में ख़बर देखी कि छिंदवाडा के आशाराम बापू जी के आश्रम में एक १४ साल के नाबालिग लड़के ने अपने ही आश्रम के दो मासूम बच्चों कि हत्या सिर्फ़ इस लिए कर दी क्यूंकि वो घर जाना चाहता था !उसके अनुसार आश्रम के नियम बहुत कड़े थे !खाना खाते समय बोलना मना था !एक ऊँगली उठाने पर रोटी ,दो ऊँगली उठाने पर दाल ,तीन ऊँगली पर सब्जी और चार ऊँगली पर चावल दिए जाते थे !और अगर खाना देने वाले ने बच्चे का उठा हाथ नज़रंदाज़ कर दिया तो वह भूखा रह सकता था !वह बच्चा अपने माता पिता का दुलार चाहता था ,अपने बचपन की आजादी चाहता था !जब उसने राम कृष्ण की गला दबा कर हत्या की तो भी आश्रम की छुट्टी नहीं हुई !उस बच्चे ने फिर हत्या करने की हिमाकत की और अगले दिन फिर वेदान्त की जान ले ली !आश्चर्य तो इस बात का है कि उसको इस बात का बिल्कुल भी अफ़सोस नहीं है !
कल सारी रात मैं यही सोचती रही कि उसकी इस मानसिकता के लिए कौन जिम्मेदार है ? आश्रम के शिक्षक या उसके माता पिता ? मेरे विचार से दोनों ही उसकी इस मानसिकता के लिए जिम्मेदार हैं !मैंने देखा कि आश्रम में ४ से ५ साल तक के बालक भी हैं !जैसे जैसे एक एक पल गुज़रता है ,किसी बालक का बचपन भी ऐसे ही गुज़रता जाता है ,और जिस प्रकार गुज़रा हुआ पल वापिस नहीं आता ,उसी प्रकार बचपन भी कभी लौट कर नहीं आता !नियम और कायदे कानून में रहने की तो मैं भी सहमती व्यक्त करती हूँ ,परन्तु इतनी छोटी उम्र में बच्चे को अपने माँ बाप के दुलार की आवश्यकता होती है !उसको अच्छा ,बुरा ,सही ग़लत का ज्ञान माता पिता से भी मिल सकता है !इतनी कम उम्र में अपने परिवार से दूर आश्रम में रहने का औचित्य मेरी समझ से परे है !अभी तो वह अपने परिवार को ही नही समझ पाया ,तो आश्रम में उसको पारिवारिक प्यार कैसे मिल पायेगा ?प्यार ,दुलार ,रूठना ,मनाना ,जिद ,बेफिक्री की जिंदगी ही तो बचपन कहलाता है !इन्हीं सब भावनाओं से दूर आश्रम में बच्चों को भेजना शायद उन्हें उनके बचपन से महरूम करना ही तो होगा !
हो सकता है की माता पिता ने अपने बच्चे को अछेसंस्कार देने के लिए आश्रम भेज दिया ,वे चाहते होंगे कीहमारे बच्चे धर्म शिक्षा ग्रहण करे ,अछे संस्कार लें ,जिंदगी के अछे नियम और कायदे सीखें !शायद ये सोच कर अपने बच्चे के भविष्य के लिए न चाहते हुए भी उनको आश्रम भेजा होगा की वहां उनका सारा समय अच्छी सांगत में गुजरे !
अब इस स्थिति में बच्चों की सारी ज़िम्मेदारी आश्रम की हो जाती है !उनको अछे संस्कार के साथ साथ प्यार दुलार भी देना ज़रूरी हो जाता है !ठीक है आश्रम के भी नियम होते हैं ,परन्तु वे नियम उनकी जीवनशैली में सुधार लाने के लिए होने चाहिए !ऐसे न हों की बच्चे उन्हें बोझ समझने लगें !आश्रम के शिक्षकों और कर्मचारियों का फ़र्ज़ बनता है की वो बच्चों से प्यार से बोलेन ,हर बात प्यार से सुनें ,प्यार से समझाएं ताकि बच्चे आश्रम को भी उतना ही अपना समझें जितना अपने घर को !क्यूँ न वो बच्चों को इतना प्यार से और कायदे से समझाएं की बच्चे अपना घर याद न करे ,जैसे खाना खाते समय इशारे से खाना मंगाने के बदले वो बोल कर मांग लें तो कुछ बुरा नहीं है !हाँ खाना खाते समय आपस में बात न करें यह समझाना ठीक है !
दूसरी बात ,पिटाई न करें ,इससे बच्चे का कोमल मन आहात होता है !उसकी गलती बताएं ,धमकाएं पर पीटना और यातना देना ग़लत है
मेरे विचार से आश्रम की ग़लत व्यवस्था इस सारे घटनाक्रम की जिम्मेदार है बड़े दुःख की बात है की जहाँ कोई बच्चा अछे संस्कार लेने गया था ,आज वह वहां से कातिल बन कर बाहर आया है ,जिसका उसको लेशमात्र भी दुःख नहीं है !वह कहता है की मैं चाहे जेल चला जाऊं पर आश्रम के २५० बच्चों को आश्रम की प्रताड़ना से मुक्ति मिल जायेगी ,वह पुलिस अफसर बनना चाहता है !