किसी भी देश को उसकी संस्कृति,सभ्यता से जाना जाता है !किसी भी देश के नागरिक,उनकी भाषा,पहनावा,रहन-सहन,रीति-रिवाज़,त्यौहार और संस्कार उस देश की पहचान होते हैं !ये हमारा सौभाग्य रहा है कि हमारा भारत देश इन्ही सब कारणों से सदियों से अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए है !हमारे देश कि सबसे बड़ी खासियत एकता में विविधता है !आपसी प्रेम,सहिष्णुता तथा सहायता के कारण ही सब भारतवासी एक सूत्र में बंधे हैं !यह वही भारत है जहाँ सदियों से नारी को सम्मान दिया जाता है और उसके चरणों में स्वर्ग का स्थान माना जाता है !समय के साथ साथ भारत ने बहुत उन्नत्ति की और अब यह एक प्रगतिशील राष्ट्र बनता जा रहा है !भिन्न भिन्न क्षेत्रों में भारत ने अपने पाँव जमाये हैं !खेलों के इतिहास में १०८ साल में पहली बार भारत के पाले में स्वर्ण पदक आया है,उसका श्री अभिनव बिंद्रा को जाता है !सुशील कुमार और विजयेन्द्र सिंह ने भी भारत का गौरव बढाया है !संसार के मानचित्र में भारत एक महाशक्ति का रूप लेता जा रहा है !अन्तरिक्ष में कल्पना चावला ने भारत की उपस्थिति दर्ज कराई है तो बाबी जिंदल ने अपनी योग्यता दर्शायी है !रतन टाटा,लक्ष्मी निवास मित्तल ,अम्बानी और न जाने कितने क्षेत्रों में कितने और भारतीय हैं जिनके योगदान से भारत का गौरव बढ़ा है,और हम भारतवासी होने पर गर्व करने लगे हैं !
मगर अफ़सोस किइसके साथ साथ हमारे संस्कारों को घुन लगता जा रहा है !आज आधुनिकता की होड़ में हम अपने संस्कारों को भूल कर दुसरे देशों के संस्कार अपनाते जा रहे हैं !परन्तु हमें वो संस्कार अपनाने चाहियें जो हमारे लिए हितकर हों और हमारे देश की शान में चार चाँद लगाने में सहायक हों !
मैं खुलेपन या स्वतंत्र वातावरण की विरोधी नहीं हूँ,परन्तु,खुलापन इतना भी न हो कि वो हमारी संस्कृति को ही नष्ट कर दे जिस प्रकार माननीय स्वास्थ्य मंत्री श्री रामदौस जी समलेंगिकता का समर्थन कर रहे हैं ,क्या वो संस्कृति ठीक है ? इनके हिसाब से ऐसा करने से ऐड्स कि बीमारी फैलने की गिरावट होगी !ये एक असंतुलित मानसिकता नज़र आती है !इस प्रकार के समर्थन से हमारे देश को क्या हासिल होगा ?
दूसरा नया और बदनुमा प्रचालन हमारे आधुनिक कहे जाने वाले समाज में आया है वाइफ स्वापिंग का !इन भद्दे प्रचलनों से हमें क्या हासिल होने वाला है ?शराब,सिगरेट,देर रात की पार्टियां तो आम थी ही,ये नए प्रचलन हमारी सभ्यता और संस्कृति को ग्रहण लगा रहे हैं !इन्हीं कारणों से समाज में बलात्कार,यौन शोषण और घरेलु हिंसा के मामलों में वृध्ही हो रही है !
यह सही है कि यदि किसी राष्ट्र को नष्ट करना हो तो उसकी संस्कृति नष्ट कर दो !हमारे संस्कारों कि नींव कमज़ोर होती जा रही है,ज़रूरत है इन्हें बचाने की !मेरे विचार से इन अर्थहीन बातों का विरोध करना चाहिए !हमें अनुकरण करना चाहिए,परन्तु बुरी बातों का नहीं ,अपितु उन बातों का ,जो हमारे समाज की उन्नति में चार चाँद लगाने में सहायक हो,जिन बातों को अपना कर हम गर्व महसूस कर सकें और जिन बातों की वजह से हम संसार में अपना एक विशिष्ठ स्थान पा सकें !
Wednesday, 27 August 2008
Wednesday, 6 August 2008
कौन है जिम्मेदार ?
कल ही टी.वी में ख़बर देखी कि छिंदवाडा के आशाराम बापू जी के आश्रम में एक १४ साल के नाबालिग लड़के ने अपने ही आश्रम के दो मासूम बच्चों कि हत्या सिर्फ़ इस लिए कर दी क्यूंकि वो घर जाना चाहता था !उसके अनुसार आश्रम के नियम बहुत कड़े थे !खाना खाते समय बोलना मना था !एक ऊँगली उठाने पर रोटी ,दो ऊँगली उठाने पर दाल ,तीन ऊँगली पर सब्जी और चार ऊँगली पर चावल दिए जाते थे !और अगर खाना देने वाले ने बच्चे का उठा हाथ नज़रंदाज़ कर दिया तो वह भूखा रह सकता था !वह बच्चा अपने माता पिता का दुलार चाहता था ,अपने बचपन की आजादी चाहता था !जब उसने राम कृष्ण की गला दबा कर हत्या की तो भी आश्रम की छुट्टी नहीं हुई !उस बच्चे ने फिर हत्या करने की हिमाकत की और अगले दिन फिर वेदान्त की जान ले ली !आश्चर्य तो इस बात का है कि उसको इस बात का बिल्कुल भी अफ़सोस नहीं है !
कल सारी रात मैं यही सोचती रही कि उसकी इस मानसिकता के लिए कौन जिम्मेदार है ? आश्रम के शिक्षक या उसके माता पिता ? मेरे विचार से दोनों ही उसकी इस मानसिकता के लिए जिम्मेदार हैं !मैंने देखा कि आश्रम में ४ से ५ साल तक के बालक भी हैं !जैसे जैसे एक एक पल गुज़रता है ,किसी बालक का बचपन भी ऐसे ही गुज़रता जाता है ,और जिस प्रकार गुज़रा हुआ पल वापिस नहीं आता ,उसी प्रकार बचपन भी कभी लौट कर नहीं आता !नियम और कायदे कानून में रहने की तो मैं भी सहमती व्यक्त करती हूँ ,परन्तु इतनी छोटी उम्र में बच्चे को अपने माँ बाप के दुलार की आवश्यकता होती है !उसको अच्छा ,बुरा ,सही ग़लत का ज्ञान माता पिता से भी मिल सकता है !इतनी कम उम्र में अपने परिवार से दूर आश्रम में रहने का औचित्य मेरी समझ से परे है !अभी तो वह अपने परिवार को ही नही समझ पाया ,तो आश्रम में उसको पारिवारिक प्यार कैसे मिल पायेगा ?प्यार ,दुलार ,रूठना ,मनाना ,जिद ,बेफिक्री की जिंदगी ही तो बचपन कहलाता है !इन्हीं सब भावनाओं से दूर आश्रम में बच्चों को भेजना शायद उन्हें उनके बचपन से महरूम करना ही तो होगा !
हो सकता है की माता पिता ने अपने बच्चे को अछेसंस्कार देने के लिए आश्रम भेज दिया ,वे चाहते होंगे कीहमारे बच्चे धर्म शिक्षा ग्रहण करे ,अछे संस्कार लें ,जिंदगी के अछे नियम और कायदे सीखें !शायद ये सोच कर अपने बच्चे के भविष्य के लिए न चाहते हुए भी उनको आश्रम भेजा होगा की वहां उनका सारा समय अच्छी सांगत में गुजरे !
अब इस स्थिति में बच्चों की सारी ज़िम्मेदारी आश्रम की हो जाती है !उनको अछे संस्कार के साथ साथ प्यार दुलार भी देना ज़रूरी हो जाता है !ठीक है आश्रम के भी नियम होते हैं ,परन्तु वे नियम उनकी जीवनशैली में सुधार लाने के लिए होने चाहिए !ऐसे न हों की बच्चे उन्हें बोझ समझने लगें !आश्रम के शिक्षकों और कर्मचारियों का फ़र्ज़ बनता है की वो बच्चों से प्यार से बोलेन ,हर बात प्यार से सुनें ,प्यार से समझाएं ताकि बच्चे आश्रम को भी उतना ही अपना समझें जितना अपने घर को !क्यूँ न वो बच्चों को इतना प्यार से और कायदे से समझाएं की बच्चे अपना घर याद न करे ,जैसे खाना खाते समय इशारे से खाना मंगाने के बदले वो बोल कर मांग लें तो कुछ बुरा नहीं है !हाँ खाना खाते समय आपस में बात न करें यह समझाना ठीक है !
दूसरी बात ,पिटाई न करें ,इससे बच्चे का कोमल मन आहात होता है !उसकी गलती बताएं ,धमकाएं पर पीटना और यातना देना ग़लत है
मेरे विचार से आश्रम की ग़लत व्यवस्था इस सारे घटनाक्रम की जिम्मेदार है बड़े दुःख की बात है की जहाँ कोई बच्चा अछे संस्कार लेने गया था ,आज वह वहां से कातिल बन कर बाहर आया है ,जिसका उसको लेशमात्र भी दुःख नहीं है !वह कहता है की मैं चाहे जेल चला जाऊं पर आश्रम के २५० बच्चों को आश्रम की प्रताड़ना से मुक्ति मिल जायेगी ,वह पुलिस अफसर बनना चाहता है !
कल सारी रात मैं यही सोचती रही कि उसकी इस मानसिकता के लिए कौन जिम्मेदार है ? आश्रम के शिक्षक या उसके माता पिता ? मेरे विचार से दोनों ही उसकी इस मानसिकता के लिए जिम्मेदार हैं !मैंने देखा कि आश्रम में ४ से ५ साल तक के बालक भी हैं !जैसे जैसे एक एक पल गुज़रता है ,किसी बालक का बचपन भी ऐसे ही गुज़रता जाता है ,और जिस प्रकार गुज़रा हुआ पल वापिस नहीं आता ,उसी प्रकार बचपन भी कभी लौट कर नहीं आता !नियम और कायदे कानून में रहने की तो मैं भी सहमती व्यक्त करती हूँ ,परन्तु इतनी छोटी उम्र में बच्चे को अपने माँ बाप के दुलार की आवश्यकता होती है !उसको अच्छा ,बुरा ,सही ग़लत का ज्ञान माता पिता से भी मिल सकता है !इतनी कम उम्र में अपने परिवार से दूर आश्रम में रहने का औचित्य मेरी समझ से परे है !अभी तो वह अपने परिवार को ही नही समझ पाया ,तो आश्रम में उसको पारिवारिक प्यार कैसे मिल पायेगा ?प्यार ,दुलार ,रूठना ,मनाना ,जिद ,बेफिक्री की जिंदगी ही तो बचपन कहलाता है !इन्हीं सब भावनाओं से दूर आश्रम में बच्चों को भेजना शायद उन्हें उनके बचपन से महरूम करना ही तो होगा !
हो सकता है की माता पिता ने अपने बच्चे को अछेसंस्कार देने के लिए आश्रम भेज दिया ,वे चाहते होंगे कीहमारे बच्चे धर्म शिक्षा ग्रहण करे ,अछे संस्कार लें ,जिंदगी के अछे नियम और कायदे सीखें !शायद ये सोच कर अपने बच्चे के भविष्य के लिए न चाहते हुए भी उनको आश्रम भेजा होगा की वहां उनका सारा समय अच्छी सांगत में गुजरे !
अब इस स्थिति में बच्चों की सारी ज़िम्मेदारी आश्रम की हो जाती है !उनको अछे संस्कार के साथ साथ प्यार दुलार भी देना ज़रूरी हो जाता है !ठीक है आश्रम के भी नियम होते हैं ,परन्तु वे नियम उनकी जीवनशैली में सुधार लाने के लिए होने चाहिए !ऐसे न हों की बच्चे उन्हें बोझ समझने लगें !आश्रम के शिक्षकों और कर्मचारियों का फ़र्ज़ बनता है की वो बच्चों से प्यार से बोलेन ,हर बात प्यार से सुनें ,प्यार से समझाएं ताकि बच्चे आश्रम को भी उतना ही अपना समझें जितना अपने घर को !क्यूँ न वो बच्चों को इतना प्यार से और कायदे से समझाएं की बच्चे अपना घर याद न करे ,जैसे खाना खाते समय इशारे से खाना मंगाने के बदले वो बोल कर मांग लें तो कुछ बुरा नहीं है !हाँ खाना खाते समय आपस में बात न करें यह समझाना ठीक है !
दूसरी बात ,पिटाई न करें ,इससे बच्चे का कोमल मन आहात होता है !उसकी गलती बताएं ,धमकाएं पर पीटना और यातना देना ग़लत है
मेरे विचार से आश्रम की ग़लत व्यवस्था इस सारे घटनाक्रम की जिम्मेदार है बड़े दुःख की बात है की जहाँ कोई बच्चा अछे संस्कार लेने गया था ,आज वह वहां से कातिल बन कर बाहर आया है ,जिसका उसको लेशमात्र भी दुःख नहीं है !वह कहता है की मैं चाहे जेल चला जाऊं पर आश्रम के २५० बच्चों को आश्रम की प्रताड़ना से मुक्ति मिल जायेगी ,वह पुलिस अफसर बनना चाहता है !
Thursday, 10 July 2008
ये कैसी दोस्ती ?
आजकल मेरा मन बहुत अशांत है !मेरी अशांति का कारण मेरी दोस्ती है !वह दोस्ती जिस पर मुझे नाज़ था !वह दोस्त (उस से मेरी मुलाक़ात १९९२ में हुई थी ) जिसका ज़िक्र हर वक्त मेरी जुबां पर रहता था ,कैसे पल भर में बदल सकता है ?मेरी दोस्त जिसके साथ मेरे ११ साल तक दिन में ११ घंटे बीतते थे ,मेरी वही दोस्त जिसके आने का इंतज़ार मैं सुबह होते ही करती थी ,जिसके साथ मैंने सुख ,दुःख ,हँसी ,खुशी ,ग़म ,बीमारी के क्षण गुजारे थे !मेरे मन में यदि एक पल के लिए भी कुछ विचार आते तो उसी क्षण मैं उसे उस बारे में बताती थी !
मैं सोच रही हूँ कि जिसने ११ साल में एक पल के लिए भी मेरी आंखों में आंसू नहीं आने दिए ,वह आजक्यूँ मुझे आंसुओं के समुद्र में डुबो रही है ? मुझे याद है वो बेपरवाह सी जिंदगी ,जिसमें सिर्फ़ खुशियाँ थी ,कोई छल कपट नहीं नज़र आता था ,प्यार था ,अपनापन था क्या एक छलावा था ?मेरी वह दोस्त जो मेरे कुछ कहे बिना ही मेरी मनोस्थिति जान जाती थी क्या आज मुझे मानसिक नुक्सान दे सकती है ?क्या वह मेरी जान की दुश्मन हो सकती है जिसने मुझे जिंदगी दी और मौत के मुंह में जाने से बचाया ?वह मेरे साथ ऐसा क्यूँ कर रही है ?
जिसका नाम सुन कर कभी मुझे फख्र होता था क्यूँ आज मैं उसका नाम सुन कर डर जाती हूँ !जिसके साथ कभी मैं बातें करती नहीं थकती थी ,आज सालों हो गए उससे बात किए हुए !मैं अपनी दोस्त और दोस्ती पर कवितायें लिखती थी !मैं आपसे बहुत दुखी मन से पूछना चाहती हूँ कि क्या कोई दोस्त ११ वर्ष की दोस्ती को दुश्मनी में बदल सकता है ?ये कैसी दोस्ती है ?आज मेरी कलम ये लिखने को मजबूर है ....
क्यूँ भरे दम कोई दोस्ती में
लुट के मर जाने का !
जब वही दोस्त सरेबाजार कत्ल करे
दोस्ती के अफ़साने का !
मैं सोच रही हूँ कि जिसने ११ साल में एक पल के लिए भी मेरी आंखों में आंसू नहीं आने दिए ,वह आजक्यूँ मुझे आंसुओं के समुद्र में डुबो रही है ? मुझे याद है वो बेपरवाह सी जिंदगी ,जिसमें सिर्फ़ खुशियाँ थी ,कोई छल कपट नहीं नज़र आता था ,प्यार था ,अपनापन था क्या एक छलावा था ?मेरी वह दोस्त जो मेरे कुछ कहे बिना ही मेरी मनोस्थिति जान जाती थी क्या आज मुझे मानसिक नुक्सान दे सकती है ?क्या वह मेरी जान की दुश्मन हो सकती है जिसने मुझे जिंदगी दी और मौत के मुंह में जाने से बचाया ?वह मेरे साथ ऐसा क्यूँ कर रही है ?
जिसका नाम सुन कर कभी मुझे फख्र होता था क्यूँ आज मैं उसका नाम सुन कर डर जाती हूँ !जिसके साथ कभी मैं बातें करती नहीं थकती थी ,आज सालों हो गए उससे बात किए हुए !मैं अपनी दोस्त और दोस्ती पर कवितायें लिखती थी !मैं आपसे बहुत दुखी मन से पूछना चाहती हूँ कि क्या कोई दोस्त ११ वर्ष की दोस्ती को दुश्मनी में बदल सकता है ?ये कैसी दोस्ती है ?आज मेरी कलम ये लिखने को मजबूर है ....
क्यूँ भरे दम कोई दोस्ती में
लुट के मर जाने का !
जब वही दोस्त सरेबाजार कत्ल करे
दोस्ती के अफ़साने का !
Saturday, 5 July 2008
दोस्ती -अभिव्यक्ति एवं अनुभूति
दोस्ती और दोस्तों की मेरी जिंदगी में हमेशा एक अहमियत रही है !बचपन से सुनते हैं न कि जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखि तिन वैसी !
शायद यही भाव मेरे मन में रहे होंगे ,तभी मुझे एक प्यारी सी दोस्त मिली !१९८० में जब में एक स्कूल में पढाती थी ,मेरी मुलाक़ात एक पतली सी ,शांत और शालीन स्वभाव वाली लड़की से हुई !नाम है मधु आनंद !सच ही आज भी अपने नाम को सार्थक करती हैं वो !बिलकुल मधु के सामान मीठे बोल,मीठे विचार और उनसे मिल कर सच ही आनंद का अनुभव होता है !उनके परिवार में उनके ताऊ जी जिन्हें वो बडे पापा कहती थी ,मम्मी ,तीन बहनें और एक भाई हैं !कौन जानता था कि एक दिन वो मेरी प्रेरणा स्त्रोत बनेंगी और काव्य व् लेखन जगत में उनकी बदौलत मेरा प्रवेश होगा !
२७ सितम्बर को उनका जन्मदिन था !वो चाहती थी कि मैं शाम को उनके घर आऊं !उस दिन मैं पहली बार उनके घर जाना चाहती थी ,परन्तु किसी कारणवश मैं जा न सकी !मन बहुत व्यथित हुआ !न जाने कैसे आँखों के आंसू स्याही बन गए ,विषाद की पीडा शब्दों में बदल गयी और मन के भाव कविता में उतर आये !सोचा अगले दिन कैसे सामना करूंगी ,क्या और कैसे कहूँगी ? बस अगले ही पल एक कागज़ और कलम ली और अपने मन की बात लिख डाली !
अगले दिन जाते ही जन्मदिन की बधाई के साथ अपने मन के भाव भी उन्हें सौंप दिए !घर जा कर अपने परिवार के बीच जब उन्होंने वह कविता पढ़ी तो उनकी आँखें भी गीली हो गयी !उस दिन के बाद से जब भी मैं कोई लेख या कहानी लिखती ,उन्हें सौंप देती थी ,और उसी शाम को घर का सारा काम समाप्त कर वह अपने विजय भैय्या के साथ बैठजाती और देर रात तक उसको अंतिम रूप दे कर सुबह मुझे दे देती !
स्कूल में मेरी और उनकी दोस्ती सिर्फ ९ महीने की ही थी !तत्पश्चात मैं बी .एड करने चली गयी !सन १९८२ से आजतक मेरी और उनकी मुलाक़ात मात्र ६ या ७ बार हुई होगी यद्दपि हम दोनों दिल्ली में ही रहते हैं !मैं ज़रूर उनको साल में ५ या ६ बार फोन कर लेती हूँ !उन्होंने शायद इन २६ सालों में सिर्फ ४ या ५ बार ही फोन किया होगा !पर जो प्यार ,इज्ज़त और मान वो और उनका परिवार मुझे देते हैं ,उसेपा कर मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझती हूँ !अंत में मैं ये कहना चाहूंगी कि मुझे मेरी दोस्त ऐसे गुलाब के फूल की तरह मिली जिसकी सुगंध आज भी उतनी ही दिलकश ,मनमोहक और लुभावनी है जितनी २८ साल पहले थी
मेरे विचार से ये ज़रूरी नहीं कि एक अच्छे और सच्चे दोस्त को पाने के लिए हम अधिकतर समय उसके साथ बिताएं !बस एक दुसरे के प्रति सम्मान और निस्वार्थ भावना होनी चाहिए !हमारी दोस्ती में कोई स्वार्थ नहीं था ,हम आज भी एक दुसरे कि भावना की कद्र करते हैं !तभी तो हमारी दोस्ती की महक दोनों परिवारों में आज भी बरकरार है और दोनों के परिवार भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं !
शायद यही भाव मेरे मन में रहे होंगे ,तभी मुझे एक प्यारी सी दोस्त मिली !१९८० में जब में एक स्कूल में पढाती थी ,मेरी मुलाक़ात एक पतली सी ,शांत और शालीन स्वभाव वाली लड़की से हुई !नाम है मधु आनंद !सच ही आज भी अपने नाम को सार्थक करती हैं वो !बिलकुल मधु के सामान मीठे बोल,मीठे विचार और उनसे मिल कर सच ही आनंद का अनुभव होता है !उनके परिवार में उनके ताऊ जी जिन्हें वो बडे पापा कहती थी ,मम्मी ,तीन बहनें और एक भाई हैं !कौन जानता था कि एक दिन वो मेरी प्रेरणा स्त्रोत बनेंगी और काव्य व् लेखन जगत में उनकी बदौलत मेरा प्रवेश होगा !
२७ सितम्बर को उनका जन्मदिन था !वो चाहती थी कि मैं शाम को उनके घर आऊं !उस दिन मैं पहली बार उनके घर जाना चाहती थी ,परन्तु किसी कारणवश मैं जा न सकी !मन बहुत व्यथित हुआ !न जाने कैसे आँखों के आंसू स्याही बन गए ,विषाद की पीडा शब्दों में बदल गयी और मन के भाव कविता में उतर आये !सोचा अगले दिन कैसे सामना करूंगी ,क्या और कैसे कहूँगी ? बस अगले ही पल एक कागज़ और कलम ली और अपने मन की बात लिख डाली !
अगले दिन जाते ही जन्मदिन की बधाई के साथ अपने मन के भाव भी उन्हें सौंप दिए !घर जा कर अपने परिवार के बीच जब उन्होंने वह कविता पढ़ी तो उनकी आँखें भी गीली हो गयी !उस दिन के बाद से जब भी मैं कोई लेख या कहानी लिखती ,उन्हें सौंप देती थी ,और उसी शाम को घर का सारा काम समाप्त कर वह अपने विजय भैय्या के साथ बैठजाती और देर रात तक उसको अंतिम रूप दे कर सुबह मुझे दे देती !
स्कूल में मेरी और उनकी दोस्ती सिर्फ ९ महीने की ही थी !तत्पश्चात मैं बी .एड करने चली गयी !सन १९८२ से आजतक मेरी और उनकी मुलाक़ात मात्र ६ या ७ बार हुई होगी यद्दपि हम दोनों दिल्ली में ही रहते हैं !मैं ज़रूर उनको साल में ५ या ६ बार फोन कर लेती हूँ !उन्होंने शायद इन २६ सालों में सिर्फ ४ या ५ बार ही फोन किया होगा !पर जो प्यार ,इज्ज़त और मान वो और उनका परिवार मुझे देते हैं ,उसेपा कर मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझती हूँ !अंत में मैं ये कहना चाहूंगी कि मुझे मेरी दोस्त ऐसे गुलाब के फूल की तरह मिली जिसकी सुगंध आज भी उतनी ही दिलकश ,मनमोहक और लुभावनी है जितनी २८ साल पहले थी
मेरे विचार से ये ज़रूरी नहीं कि एक अच्छे और सच्चे दोस्त को पाने के लिए हम अधिकतर समय उसके साथ बिताएं !बस एक दुसरे के प्रति सम्मान और निस्वार्थ भावना होनी चाहिए !हमारी दोस्ती में कोई स्वार्थ नहीं था ,हम आज भी एक दुसरे कि भावना की कद्र करते हैं !तभी तो हमारी दोस्ती की महक दोनों परिवारों में आज भी बरकरार है और दोनों के परिवार भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं !
Wednesday, 28 May 2008
दोस्ती -- मेरी नज़र में
यदि हम एक ही विषय पर बहुत से लोगों की राय जानना चाहें तो हम देखते हैं कि सब के भिन्न भिन्न विचार होते हैं!ऐसा होना स्वाभाविक भी है , क्यूंकि हमारे विचार जिंदगी के तजुर्बे पर आधारित होते हैं !इतना ही नहीं , एक ही विषय पर एक ही इंसान के विचार समय समय पर अपने तजुर्बे के आधार पर बदलते रहते हैं ! अपने विचारों का यह अंतर मैंने अपने तजुर्बे से महसूस किया है ! आज से करीब २७ साल पहले मैंने दोस्ती पर एक लेख लिखा था ! परन्तु यदि आज मुझे एक बार फिर इसी विषय पर लिखना पड़े तो शायद मेरे विचार इस से बिलकुल भिन्न होंगे !२७ साल पहले दोस्ती के बारे में मेरे विचार क्या थे या यूं कहिये कि कितने मासूम थे आपको इससे अवगत कराना चाहती हूँ
अभिव्यक्ति एवं अनुभूति
दोस्ती
अपनी नज़र में
बाग़ में गुलाब का फूल देखा और चल पड़े उसे तोड़ने ! ज़रा संभल कर हाथ बढ़ाना , इस फूल के नीचे बहुत कांटे होते हैं , जिनके ज़रा सा हाथ लगने से घाव हो सकता है !अतः इन काँटों का ध्यान रखते हुए ही फूल तोड़ना ! एक फूल कि सुन्दरता उसकी महक जब मन में बस जाती है तो वह उसे लेने कि ठान ही लेता है ,बेशक उसे कांटे लग जाएँ !
दोस्ती भी एक गुलाब के फूल कि तरह होती है , जिसकी अपनी एक विशेष महक ,अपना एक रंग होता है ! परन्तु फर्क इतना है कि गुलाब के फूल के इन्ही गुणों को देखा जा सकता है , जबकि दोस्ती कि महक को केवल अनुभव किया जा सकता है ! बहुत कम लोग इस अद्रश्य महक का आनंद ले सकते हैं क्यूंकि दोस्ती जैसे फूल के नीचे स्वाभिमान व अंहकार रुपी अनेक नुकीले व कष्टदायी कांटे होते हैं ! इन्हीं स्वाभिमानी काँटों से गुज़र कर ही दोस्ती कि महक का आनंद लिया जा सकता है !
अब प्रश्न यह उठता है कि यहाँ स्वाभिमान व अंहकार को काँटों का रूप देना कहाँ तक उचित है ? स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यक्ति में स्वाभिमान व अंहकार कि भावना होती है !यदि हम दो दोस्तों को एक तराजू के दो पलडे समझें तो हम देखते हैं कि कभी एक पलडे को झुकना पड़ेगा तो कभी दुसरे को ! और झुकने से हमें रोकता है हमारा अहम् ! हमें अपने अंहकार को त्यागना होगा , ठीक उसी प्रकार , जिस प्रकार हम फूल कि टहनी से कांटे तोड़ कर फ़ेंक देते हैं ! ऐसा करने से ही हम दोस्ती रुपी सुन्दर फूल को पा सकते हैं !
इसके विपरीत यदि हमे अंहकार रुपी कांटे न तोड़ कर उसे केवल दबा लिया तो एक दिन अवश्य ही यह हमारी भावनाओं पर ऐसी चोट करेगा जिसका घाव कभी नहीं भर सकता , और जिसके फलस्वरूप हम उन्हीं काँटों में उलझ जायेंगे और हमारा दोस्ती रुपी फूल मुरझा जायेगा , उसकी महक समाप्त हो जायेगी !
अभिव्यक्ति एवं अनुभूति
दोस्ती
अपनी नज़र में
बाग़ में गुलाब का फूल देखा और चल पड़े उसे तोड़ने ! ज़रा संभल कर हाथ बढ़ाना , इस फूल के नीचे बहुत कांटे होते हैं , जिनके ज़रा सा हाथ लगने से घाव हो सकता है !अतः इन काँटों का ध्यान रखते हुए ही फूल तोड़ना ! एक फूल कि सुन्दरता उसकी महक जब मन में बस जाती है तो वह उसे लेने कि ठान ही लेता है ,बेशक उसे कांटे लग जाएँ !
दोस्ती भी एक गुलाब के फूल कि तरह होती है , जिसकी अपनी एक विशेष महक ,अपना एक रंग होता है ! परन्तु फर्क इतना है कि गुलाब के फूल के इन्ही गुणों को देखा जा सकता है , जबकि दोस्ती कि महक को केवल अनुभव किया जा सकता है ! बहुत कम लोग इस अद्रश्य महक का आनंद ले सकते हैं क्यूंकि दोस्ती जैसे फूल के नीचे स्वाभिमान व अंहकार रुपी अनेक नुकीले व कष्टदायी कांटे होते हैं ! इन्हीं स्वाभिमानी काँटों से गुज़र कर ही दोस्ती कि महक का आनंद लिया जा सकता है !
अब प्रश्न यह उठता है कि यहाँ स्वाभिमान व अंहकार को काँटों का रूप देना कहाँ तक उचित है ? स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यक्ति में स्वाभिमान व अंहकार कि भावना होती है !यदि हम दो दोस्तों को एक तराजू के दो पलडे समझें तो हम देखते हैं कि कभी एक पलडे को झुकना पड़ेगा तो कभी दुसरे को ! और झुकने से हमें रोकता है हमारा अहम् ! हमें अपने अंहकार को त्यागना होगा , ठीक उसी प्रकार , जिस प्रकार हम फूल कि टहनी से कांटे तोड़ कर फ़ेंक देते हैं ! ऐसा करने से ही हम दोस्ती रुपी सुन्दर फूल को पा सकते हैं !
इसके विपरीत यदि हमे अंहकार रुपी कांटे न तोड़ कर उसे केवल दबा लिया तो एक दिन अवश्य ही यह हमारी भावनाओं पर ऐसी चोट करेगा जिसका घाव कभी नहीं भर सकता , और जिसके फलस्वरूप हम उन्हीं काँटों में उलझ जायेंगे और हमारा दोस्ती रुपी फूल मुरझा जायेगा , उसकी महक समाप्त हो जायेगी !
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