Saturday, 5 July 2008

दोस्ती -अभिव्यक्ति एवं अनुभूति

दोस्ती और दोस्तों की मेरी जिंदगी में हमेशा एक अहमियत रही है !बचपन से सुनते हैं न कि जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखि तिन वैसी !
शायद यही भाव मेरे मन में रहे होंगे ,तभी मुझे एक प्यारी सी दोस्त मिली !१९८० में जब में एक स्कूल में पढाती थी ,मेरी मुलाक़ात एक पतली सी ,शांत और शालीन स्वभाव वाली लड़की से हुई !नाम है मधु आनंद !सच ही आज भी अपने नाम को सार्थक करती हैं वो !बिलकुल मधु के सामान मीठे बोल,मीठे विचार और उनसे मिल कर सच ही आनंद का अनुभव होता है !उनके परिवार में उनके ताऊ जी जिन्हें वो बडे पापा कहती थी ,मम्मी ,तीन बहनें और एक भाई हैं !कौन जानता था कि एक दिन वो मेरी प्रेरणा स्त्रोत बनेंगी और काव्य व् लेखन जगत में उनकी बदौलत मेरा प्रवेश होगा !
२७ सितम्बर को उनका जन्मदिन था !वो चाहती थी कि मैं शाम को उनके घर आऊं !उस दिन मैं पहली बार उनके घर जाना चाहती थी ,परन्तु किसी कारणवश मैं जा न सकी !मन बहुत व्यथित हुआ !न जाने कैसे आँखों के आंसू स्याही बन गए ,विषाद की पीडा शब्दों में बदल गयी और मन के भाव कविता में उतर आये !सोचा अगले दिन कैसे सामना करूंगी ,क्या और कैसे कहूँगी ? बस अगले ही पल एक कागज़ और कलम ली और अपने मन की बात लिख डाली !
अगले दिन जाते ही जन्मदिन की बधाई के साथ अपने मन के भाव भी उन्हें सौंप दिए !घर जा कर अपने परिवार के बीच जब उन्होंने वह कविता पढ़ी तो उनकी आँखें भी गीली हो गयी !उस दिन के बाद से जब भी मैं कोई लेख या कहानी लिखती ,उन्हें सौंप देती थी ,और उसी शाम को घर का सारा काम समाप्त कर वह अपने विजय भैय्या के साथ बैठजाती और देर रात तक उसको अंतिम रूप दे कर सुबह मुझे दे देती !
स्कूल में मेरी और उनकी दोस्ती सिर्फ ९ महीने की ही थी !तत्पश्चात मैं बी .एड करने चली गयी !सन १९८२ से आजतक मेरी और उनकी मुलाक़ात मात्र ६ या ७ बार हुई होगी यद्दपि हम दोनों दिल्ली में ही रहते हैं !मैं ज़रूर उनको साल में ५ या ६ बार फोन कर लेती हूँ !उन्होंने शायद इन २६ सालों में सिर्फ ४ या ५ बार ही फोन किया होगा !पर जो प्यार ,इज्ज़त और मान वो और उनका परिवार मुझे देते हैं ,उसेपा कर मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझती हूँ !अंत में मैं ये कहना चाहूंगी कि मुझे मेरी दोस्त ऐसे गुलाब के फूल की तरह मिली जिसकी सुगंध आज भी उतनी ही दिलकश ,मनमोहक और लुभावनी है जितनी २८ साल पहले थी
मेरे विचार से ये ज़रूरी नहीं कि एक अच्छे और सच्चे दोस्त को पाने के लिए हम अधिकतर समय उसके साथ बिताएं !बस एक दुसरे के प्रति सम्मान और निस्वार्थ भावना होनी चाहिए !हमारी दोस्ती में कोई स्वार्थ नहीं था ,हम आज भी एक दुसरे कि भावना की कद्र करते हैं !तभी तो हमारी दोस्ती की महक दोनों परिवारों में आज भी बरकरार है और दोनों के परिवार भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं !

2 comments:

rajesh singh kshatri said...

bahut khub.

Ashutosh Pandey said...

shivani ji bahut khub... main b yahi kehna chahata hu ki dosti me kabhi bhi swarth k liye jagah nahi hoti... aur disti swarth k liye nahi hoti...

but i have a request... aur meri request hai ki aap apni wo pehli kavita is blog par jarur post karen...