Thursday 10 July, 2008

ये कैसी दोस्ती ?


आजकल मेरा मन बहुत अशांत है !मेरी अशांति का कारण मेरी दोस्ती है !वह दोस्ती जिस पर मुझे नाज़ था !वह दोस्त (उस से मेरी मुलाक़ात १९९२ में हुई थी ) जिसका ज़िक्र हर वक्त मेरी जुबां पर रहता था ,कैसे पल भर में बदल सकता है ?मेरी दोस्त जिसके साथ मेरे ११ साल तक दिन में ११ घंटे बीतते थे ,मेरी वही दोस्त जिसके आने का इंतज़ार मैं सुबह होते ही करती थी ,जिसके साथ मैंने सुख ,दुःख ,हँसी ,खुशी ,ग़म ,बीमारी के क्षण गुजारे थे !मेरे मन में यदि एक पल के लिए भी कुछ विचार आते तो उसी क्षण मैं उसे उस बारे में बताती थी !
मैं सोच रही हूँ कि जिसने ११ साल में एक पल के लिए भी मेरी आंखों में आंसू नहीं आने दिए ,वह आजक्यूँ मुझे आंसुओं के समुद्र में डुबो रही है ? मुझे याद है वो बेपरवाह सी जिंदगी ,जिसमें सिर्फ़ खुशियाँ थी ,कोई छल कपट नहीं नज़र आता था ,प्यार था ,अपनापन था क्या एक छलावा था ?मेरी वह दोस्त जो मेरे कुछ कहे बिना ही मेरी मनोस्थिति जान जाती थी क्या आज मुझे मानसिक नुक्सान दे सकती है ?क्या वह मेरी जान की दुश्मन हो सकती है जिसने मुझे जिंदगी दी और मौत के मुंह में जाने से बचाया ?वह मेरे साथ ऐसा क्यूँ कर रही है ?
जिसका नाम सुन कर कभी मुझे फख्र होता था क्यूँ आज मैं उसका नाम सुन कर डर जाती हूँ !जिसके साथ कभी मैं बातें करती नहीं थकती थी ,आज सालों हो गए उससे बात किए हुए !मैं अपनी दोस्त और दोस्ती पर कवितायें लिखती थी !मैं आपसे बहुत दुखी मन से पूछना चाहती हूँ कि क्या कोई दोस्त ११ वर्ष की दोस्ती को दुश्मनी में बदल सकता है ?ये कैसी दोस्ती है ?आज मेरी कलम ये लिखने को मजबूर है ....
क्यूँ भरे दम कोई दोस्ती में
लुट के मर जाने का !
जब वही दोस्त सरेबाजार कत्ल करे
दोस्ती के अफ़साने का !

8 comments:

संजय शर्मा said...

हम सब जो न कर पाते वो ग़लतफ़हमी आकर कर जाती है. बेहतर होता आप अपने अहम् , डर या झिझक को दूर कर उनसे मिल लें .मुझे विश्वास है दोनों की आँखें रोएगी ,एक दुसरे की सोच बदल जायेगी .मानो या न मानो दोनों में अहम् अभी भी है नही तो किला फतह में टाइम ही कितना लगता है.
देखिये नीचे खड़ी आपकी दोस्त क्या कह रही है :-
"गैरों से कहा तुमने, गैरों से सुना तुमने !
कुछ हमसे कहा होता, कुछ हमसे सुना होता !

Ila's world, in and out said...

एक नहीं कई बार मेरे साथ ऐसा हुआ है कि दोस्तों ने पीठ में खंजर भोंके हैं.ऐसे वैसे दोस्त नहीं,खास दोस्त.फ़िर भी फ़ितरतन हमने दोस्ती करना और और दोस्तों पर विश्वास करना नहीं छोडा.
आपकी तकलीफ़ आपके इस लेख से छलक रही है.

librandigu said...

didi kya bolun mere ankhe num ho aai hain....kya dost aise bhi hote hain.....???

Ajit Pandey said...

क्यूँ भरे दम कोई दोस्ती में
लुट के मर जाने का !
जब वही दोस्त सरेबाजार कत्ल करे
दोस्ती के अफ़साने का !
Ab tak mai sirf gulzar sahab ka fan tha ab se tumhra hoonnn..
Ek ek line , ek ek shabd jaise haqikat me ho raha ho....

Unknown said...

hi shivani ji
yaar itna bhadia kaise likh leti ho, bahut badia lagta hai aapki lekh dekhkar

~【ツ】~Anshumaan Vishnu~【ツ】~ said...

hi shivani,
aapke lekh hame b ek baar sochne par majboor se kar dete hai...
dekhiye ho sakta hai aapke aur aapke us frend me koi misunderstanding ho... mere hisabaapko ise sort out kar lena chahiye... kyoki ek baar jo dosti kayam ho jaati hai wo barkarar rehti hai...
shyad bashir badr ji ne likha hai...
DUSHMANI JAM KAR KARO,
MAGAR YE GUNJISH RAHE.
FIR KABHI DOST HO JAYE,
TO SHARMINDA NA HO...
to is baat ko dhyan rakhihe aur asha karta hu aapki dosti fir se purane raste par aa jaye...

Meghana said...

Nice post!came from Indi blogger

manav mehta said...

hello shivani ji, der se aane ke liye maafi chahta hun.... aapka yeh lekh acha lga... bahut hi umda lekh likha hai...iske liye aap bdhai k patr hai....aksar dost aisa hi karte hai...yahi zindagi hai....