Wednesday, 6 August 2008

कौन है जिम्मेदार ?


कल ही टी.वी में ख़बर देखी कि छिंदवाडा के आशाराम बापू जी के आश्रम में एक १४ साल के नाबालिग लड़के ने अपने ही आश्रम के दो मासूम बच्चों कि हत्या सिर्फ़ इस लिए कर दी क्यूंकि वो घर जाना चाहता था !उसके अनुसार आश्रम के नियम बहुत कड़े थे !खाना खाते समय बोलना मना था !एक ऊँगली उठाने पर रोटी ,दो ऊँगली उठाने पर दाल ,तीन ऊँगली पर सब्जी और चार ऊँगली पर चावल दिए जाते थे !और अगर खाना देने वाले ने बच्चे का उठा हाथ नज़रंदाज़ कर दिया तो वह भूखा रह सकता था !वह बच्चा अपने माता पिता का दुलार चाहता था ,अपने बचपन की आजादी चाहता था !जब उसने राम कृष्ण की गला दबा कर हत्या की तो भी आश्रम की छुट्टी नहीं हुई !उस बच्चे ने फिर हत्या करने की हिमाकत की और अगले दिन फिर वेदान्त की जान ले ली !आश्चर्य तो इस बात का है कि उसको इस बात का बिल्कुल भी अफ़सोस नहीं है !
कल सारी रात मैं यही सोचती रही कि उसकी इस मानसिकता के लिए कौन जिम्मेदार है ? आश्रम के शिक्षक या उसके माता पिता ? मेरे विचार से दोनों ही उसकी इस मानसिकता के लिए जिम्मेदार हैं !मैंने देखा कि आश्रम में ४ से ५ साल तक के बालक भी हैं !जैसे जैसे एक एक पल गुज़रता है ,किसी बालक का बचपन भी ऐसे ही गुज़रता जाता है ,और जिस प्रकार गुज़रा हुआ पल वापिस नहीं आता ,उसी प्रकार बचपन भी कभी लौट कर नहीं आता !नियम और कायदे कानून में रहने की तो मैं भी सहमती व्यक्त करती हूँ ,परन्तु इतनी छोटी उम्र में बच्चे को अपने माँ बाप के दुलार की आवश्यकता होती है !उसको अच्छा ,बुरा ,सही ग़लत का ज्ञान माता पिता से भी मिल सकता है !इतनी कम उम्र में अपने परिवार से दूर आश्रम में रहने का औचित्य मेरी समझ से परे है !अभी तो वह अपने परिवार को ही नही समझ पाया ,तो आश्रम में उसको पारिवारिक प्यार कैसे मिल पायेगा ?प्यार ,दुलार ,रूठना ,मनाना ,जिद ,बेफिक्री की जिंदगी ही तो बचपन कहलाता है !इन्हीं सब भावनाओं से दूर आश्रम में बच्चों को भेजना शायद उन्हें उनके बचपन से महरूम करना ही तो होगा !
हो सकता है की माता पिता ने अपने बच्चे को अछेसंस्कार देने के लिए आश्रम भेज दिया ,वे चाहते होंगे कीहमारे बच्चे धर्म शिक्षा ग्रहण करे ,अछे संस्कार लें ,जिंदगी के अछे नियम और कायदे सीखें !शायद ये सोच कर अपने बच्चे के भविष्य के लिए न चाहते हुए भी उनको आश्रम भेजा होगा की वहां उनका सारा समय अच्छी सांगत में गुजरे !
अब इस स्थिति में बच्चों की सारी ज़िम्मेदारी आश्रम की हो जाती है !उनको अछे संस्कार के साथ साथ प्यार दुलार भी देना ज़रूरी हो जाता है !ठीक है आश्रम के भी नियम होते हैं ,परन्तु वे नियम उनकी जीवनशैली में सुधार लाने के लिए होने चाहिए !ऐसे न हों की बच्चे उन्हें बोझ समझने लगें !आश्रम के शिक्षकों और कर्मचारियों का फ़र्ज़ बनता है की वो बच्चों से प्यार से बोलेन ,हर बात प्यार से सुनें ,प्यार से समझाएं ताकि बच्चे आश्रम को भी उतना ही अपना समझें जितना अपने घर को !क्यूँ न वो बच्चों को इतना प्यार से और कायदे से समझाएं की बच्चे अपना घर याद न करे ,जैसे खाना खाते समय इशारे से खाना मंगाने के बदले वो बोल कर मांग लें तो कुछ बुरा नहीं है !हाँ खाना खाते समय आपस में बात न करें यह समझाना ठीक है !
दूसरी बात ,पिटाई न करें ,इससे बच्चे का कोमल मन आहात होता है !उसकी गलती बताएं ,धमकाएं पर पीटना और यातना देना ग़लत है
मेरे विचार से आश्रम की ग़लत व्यवस्था इस सारे घटनाक्रम की जिम्मेदार है बड़े दुःख की बात है की जहाँ कोई बच्चा अछे संस्कार लेने गया था ,आज वह वहां से कातिल बन कर बाहर आया है ,जिसका उसको लेशमात्र भी दुःख नहीं है !वह कहता है की मैं चाहे जेल चला जाऊं पर आश्रम के २५० बच्चों को आश्रम की प्रताड़ना से मुक्ति मिल जायेगी ,वह पुलिस अफसर बनना चाहता है !

20 comments:

Unknown said...

o great yaar, yumne to kamal kar diya, gagar me sagar bhar diya.
i proud of u.
i like that blog nd ur vichar about children
i like very much
cary on mam

Unknown said...

shandar lekh jiske liye award milna cahiye

librandigu said...

yes didi i agreed wid u....
i also remembered my childhood when my papa wants to send me in hostel but later he droped d idea qunki most of d times main beemar hi rehta tha...
aaj wen i was in class 7th den went to join Ramkrishna mission in Deoghar, wahan ki life aur ghar ki life bilkul alag thi....
after comming fr mission maine ye realise kia k jitna pyar dular hume ghar me milta hai wo kahin nahi....
ma aur papa bachon ke sabse pahle school hai....its der duty hw dey wana made der childs...agar prarambhik sikcha ghar pe hui hai to wo bacha bara hoke wp realise karega..ghar ka descipline aur mission ya ashram ka discipline me wo tab jake tal mel baitah sakta hai.....

Udan Tashtari said...

दमन इस तरह की विकृतियों का जनक है फिर वो बाल सुलभ आकांक्षाओं का दमन हो या कुछ और. आभार इस आलेख के लिए.

Nitish Raj said...

सही कहा आपने गुजरा वक्त वापस नहीं आता। और बाल मन तो बाल मन हुआ। कभी कभी मैं भी अपने बच्चे पर गुस्सा कर देता हूं लेकिन आप की बातें याद रखूंगा। गलती मानता हूं।

vipinkizindagi said...

aasaram ko to main pahale se hi pakhandi samajhta tha...
ab sabit bhi ho gaya.
aasaram ko to saza honi chahiye...

रश्मि प्रभा... said...

niyam zaruri hain,par itne kade niyam nahi.....aashramwalon ko bachche ko sanwarne ke saath unki komal bhawnaaon ko nazarandaj nahi karna chahiye. bachche ko galat disha me badhakar prashnottar kaisa?
ek baar ke baad dusri baar ka badhawa kisne diya ? are main is tarah khana na khaun , wah to bachcha hai.
aap khayengi?
ungli nahin dekhi kisi ne phir?
aashram ka dosh hai aur abhibhawak ka bhi,khud jaayen n aashram me

सागर नाहर said...

मेरे विचार में माता पिता ज्यादा दोषी है, कैसे उनका मन हुआ अपने फूल से बच्चों को आश्रम में भेजने का? अरे इस उम्र में तो बच्चे सही ढ़ंग से खाना खा भी नहीं सकते, उन्हें इस उम्र में इतने अनुशाषन में रखना.. धिक्कार है ऐसे माता पिताओ को। अपने बच्चों को एक खरोंच तक हमसे सहन नहीं होती और उन्हें अपने कलेजे से दूर भेज दिया!!!
दूसरी गलती है, आश्रम के संचालकों की जब उन्हें पता था कि चार साल के बच्चे कितने मासूम और अबोध होते हैं उन्हें अकेले स्नान करने कैसे भेज दिया जाता है, कैसे उन्हें उंगली उठाकर खाना मांगने को बाध्य किया जाता है...
मन बहुत आहत हो गया है यह सब जानने के बाद।
अब आगे और लिखने की हिम्मत नहीं रही।
दस्तक
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक

सागर नाहर said...

मैं ऐसा नहीं कहता कि मैं कभी बच्चों पर गुस्सा नहीं करता, जरूरत पड़ने पर कभी कभार ..। कभी डाँटते हैं तो प्यार भी करते हैं। फिर मना भी लेते हैं.. पर उन्हें इस तरह दूर भेजने की हिम्मत तो मुझमें बिल्कुल नहीं है।

Asha Joglekar said...

Is bat ko adhorekhit karane ke liye dhnya wad Apneko ashram kahlane wale bachchon ko itana mansik tanaw kaise de sakte hain ? Matapita ko bhi bachchon se milkar poochte rahana chhiye ki unhe apne naye pariwesh men kaisa lag raha hai koi pareshani to nahi.

Radhika Budhkar said...

bahut sundar lekh.Aasha karti hu aap hamesha isi tarah likhti rahengi.

Amit K Sagar said...

अच्छा लेख. लिखते रहिए.
---
यहाँ भी आयें;
उल्टा तीर

admin said...

ऐसे क्रूर नियम तो कैदियों के लिए भी नहीं होते।

Ajit Pandey said...

Mai is lekh ke liye to aapko badhaiyaa deta hi par jis mude par aapne likha hai aur jis dang se likha uske liye dhero badhaiyaan.....

Anonymous said...

shivani ji u r great.is lekh ko padh kar mann bhari ho gaya.mein bhi jab kaam se bahar jaati hoon aur bachche ghar mein hote hai to unki chinta hoti hai.ek minute ke liye akela nahin chod sakte aur ye mata pita bachcho ko apne se door chod dete hai.very touching. badhaiyaan. hats off to u.....juhi

Sajeev said...

shivani ji baut achha likha hai, sakriya hokar yuhin likhte rahiyega , meri shubkamnayen aapke saath hamesha hai

Ashutosh Pandey said...

bache to pyar k he bhuke hote agar kisi bache ko koi baat pyar se samjhai jaye to wo jaldi use samjhega...
shivani ji aapne is topic ko jis dhang likha hai wo kabile tarif hai... bahut-bahut shubhkamnaye...
isi tarah se aap likhti rahiye...

Anonymous said...

ये बाल हत्‍या तो है ही सही मायने में ये बचपन की हत्‍या है। इसके लिए किसी भी

Anonymous said...

बचपन की हत्‍या
बेहद दर्दनाक
बेहद शर्मनाक

Anonymous said...

nhi shivani ji ye aapki soch galat hai ....

mana ki ma bap baccho main acche sanskar dal sakte hai...

lekin mene note kiya hai...

agar baccha bigarta bhi hai tho ma bap ki badolat...

mene kai aise kisse dekhe hai ki jha ma bap bacche ko soya hua samaj kar aapas main sex karte hai....

or wo bura asar bhi baccho per parta hai...

aap bhi supose karo....


main apni baat batata hu mera chota bhai ghar me rehta tha tho gali galoz sab sikh gaya tha kyuki use aazadi de di gayi thi...

mata pita care karte the tho wo ro ro k bhag jata khelne....

aaj wo pujya sant shri asharamji school main parta hai....

or main videsh main rehta hu...

muje dekh kar herani hui ki mera bhai ab subeh school jata hai tho sabke pair chu kar ....

ashirwad lekar....or aap shabd k bina baat nhi karta ....

ek ek ghanta beth k pooja karta hai....

ye bhi tho ek such hai....

isliye sant koi bhi ho un per ilgam nhi lagana chaiye....

itne mahan hai mere bapu...

dusra koi jag main nhi hai....